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Pustak Details | |
Author | Chitra Bhushan Shrishtav |
ISBN-13 | 9789382189992 |
Format | Paperback |
Language | Hindi |
Pages | 190 Pages |
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Book Description
अंतर्ध्वनि , 142 गेय कवितायें
कविता को समझने के लिये जरूरी है कि कवि को समझा जावे , उसके परिदृश्य , उसकी जिजिविषा , उसके रचना कर्म को प्रभावित करते ही हैं . अंतर्ध्वनि की समस्त १४२ गेय कवितायें प्रो सी बी श्रीवास्तव विदग्ध को समझे बगैर अधूरी हैं . उन्होने दिल से देश के लिये समाज और साहित्य के लिये जो रचनायें की हैं वे संग्रहित हैं इस कृति में .
आध्यात्मिक ,शांत , एकांत साहित्य साधक प्रो चित्र भूषण श्रीवास्तव विदग्ध
सादा जीवन उच्च विचार के आदर्श के साथ गीता को जैसे वे जी रहे हैं . गुटबाजी और राजनीति से दूर अपनेपन के साथ सबसे आत्मीयभाव से मिलते हैं . शांत ,गंभीर , एकांत साहित्य साधक प्रो चित्र भूषण श्रीवास्तव विदग्ध सहज ,सरल व्यक्तित्व के मालिक हैं . संकल्पढ़ृड़ता और आत्मविश्वास से भरे हुये हैं . उन्होने आजादी की लड़ाई बहुत पास से देखी और अपने तरीके से उसमें सहभागिता की है . वे मण्डला के अमर शहीद उदयचंद जैन के सहपाठी रहे हैं . उन्होने आजादी के पहले के वे दिन जिये हैं , जब एक सुई या ब्लेड तक ,मेड इन लंदन होता था और वे आज के इस परिवर्तन के भी साक्षी हैं जब देश में बने उपग्रह चांद तक पहुंच रहे हैं . वे उस पीढ़ी का प्रतिनिधित्व करते हैं जिसने घोड़े पर सवार डाकिये को चिट्ठियां ले जाते देखा है प्रत्येक सामयिक समस्या और महत्वपूर्ण घटना पर उन्होने निधड़क आशा भरी कलम चलाई है . चीन और पाकिस्तान के खिलाफ लड़ाईयां , आपातकाल , भूकम्प ,चक्रवात व बाढ़ की विभीषिकायें , सत्ता परिवर्तन और जाने किन किन विषयो पर उन्होने सार गर्भित रचनाये लिखी हैं . उनका अनुभव संसार बहुत विशाल है . उन्होने देशाटन किया है जनरल डिब्बे से लेकर ए सी डब्बे के यात्रियो के बीच सहज चर्चाओ से लोगो के मनोविज्ञान को समझा ही नही उन पर लिखा भी है . उम्र के नब्बे के दशक में भी वे नया रचते ही नही , लगातार नया पढ़ते हुये भी मिलते हैं . चिंतन मनन , नियमित , संयमित तथा मर्यादित जीवन शैली उनकी विशेषता है . वे लेखक , कवि , अनुवादक , शिक्षाविद की भूमिकाओ के साथ ही आर्थिक विशेषज्ञ भी हैं . प्रगति प्रकाशन आगरा से प्रकाशित भारतीय लेखक कोश में , पड़ाव प्रकाशन भोपाल से प्रकाशित हस्ताक्षर तथा सृजनधर्मी , जन परिषद भोपाल से प्रकाशित हू इज हू इन मध्य प्रदेश , मण्डला जिले का साहित्यिक विकास आदि ग्रंथो में उनका विस्तृत परिचय प्रकाशित है . उनके पिता स्व.छोटे लाल वर्मा का मण्डला में स्वातंत्र्य आंदोलन प्रारंभ करने व गांधी जी की विचारधारा को मण्डला के अनपढ़ लोगो तक पहुंचाने व तत्कालीन राष्ट्रवादी साहित्य को मण्डला के युवाओ तक पहुंचाने में उल्लेखनीय योगदान था , मां सरस्वती देवी एक विदुषी , धर्मप्राण , साक्षर महिला थी . घर की सबसे बड़ी संतान होने के कारण पिता के देहांत के बाद छोटे भाइयो की शिक्षा दीक्षा की जबाबदारी प्रो श्रीवास्तव ने वहन की . उनका विवाह लखनऊ में श्रीमती दयावती श्रीवास्तव से ३० मई १९५१ को हुआ था . नारी स्वातंत्र्य की विचारधारा उनके मन में कितने गहरे तक है इसका पता इसी से चलता है कि मण्डला जैसी छोटी जगह की तत्कालीन सामाजिक परिस्थितियो में भी विवाह के बाद पति पत्नी ने साथ साथ स्नातकोत्तर शिक्षा प्राप्त की एवं श्रीमती श्रीवास्तव ने भी शासकीय नौकरी की . वे आदर्श शिक्षक दम्पति के रूप में प्रतिष्ठित रहे .
जब जब जो व्यक्ति उनके गहन संपर्क में आया वह उनके प्रति चिर श्रद्धा से अभीभूत हुये बिना नही रहा और अपने परिवेश से मिलता यही प्यार प्रो श्रीवास्तव की पूंजी है . भारतीय सांस्कृतिक मूल्यो के अनुरूप आत्म प्रशंसा से दूर , मितभाषी , देश प्रेम व आध्यात्मिक अभिरुचि से अभिप्रेरित ये कर्तव्य निष्ठ साहित्य मनीषी मौन साहित्य साधना में आज भी उसी अध्ययनशीलता और सक्रियता से निरत है.